Astha sharma: बहते वक़्त के पथ पर मैं चलता गया खुद को खुद में ही मैं खोता गया! खुश था मैं अपनी ज़िन्दगी की छोटी उड़ान में पर सितारे छूने की आस में मैं बिखरता गया ! अब सोचता हूं सब कुछ था मेरे पास संतोष से रहने जितना पर सूरज और चाँद को एक साथ उगाने के जूनून में बेवजह आगे बढ़ता गया! थक गया अब अपने दोतरफ़ा जज़्बातो से अपनी बेमंज़िली राह को पाने की लालसा में मैं सब कुछ लुटाता गया! अब लगता है टूट गया है जैसे मेरे हृदय में जज्बातों का वो बाँध और मैं अपनी बिखरी रूह के टुकड़ो के साथ अकेला ही उसमे बहता गया ! अब मन में सिर्फ उस गुनाह का ग़म है और दिल में सिर्फ प्रायश्चित की अग्नि ना जाने क्यों परिणाम जानते हुए भी मैं उस ख़ता को दोहराता गया! |
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